Tuesday 31 May 2016

क्यों आसमान का रंग नीला होता है ?

क्यों आसमान का रंग  नीला होता है ?

               आसमान नीला क्यों है ये सवाल सदियों से हर किसी के मन में आते रहा है. लेकिन  अंतरिक्ष में अगर जाकर देखे तो आसमान नीला नहीं दिखाई देता। आकाश आसमान का तो कोई रंग होता ही नहीं है. अंतरिक्ष में असमान का  रंग काला दिखेगा. लेकिन धरती से आसमान नीला  क्यों दिखाई देता है??

               मुख्य रूप से इसका संबंध पृथ्वी के वायुमंडल से है. पृत्वी के वायुमंडल में अनेक गैसों का मिश्रण है और इन गैसों के मिश्रणोंसे पृथ्वी का वायुमंडल घिरा हुआ है. ये गैस तो है ही लेकिन इन गैसों के आलावा अनेक  पदार्थ है जैसे की धूल के कण पराग कण, गैस जो बनी होती है वो अणुओं से बनी होती है, अत्यन्त सूक्ष्म कणों से बनी होती है.   वायुमंडल में जब सूर्य की किरणे प्रकाश प्रवेश करती  है, तो वो किरणे, प्रकाश इन कनोंसे टकराती है. वैसे तो सूर्य का प्रकाश तो अनेक तरंगो से बना होता है, उनमे से सात रंगों को हमारी आँखे देख पाती है.

                जब प्रकाश किसी कण से टकरा जाता है तो वो आर पार् हो जाता है या परावर्तित हो जाता है. उनीसवीं सदी में जोन डिंटल नमक विज्ञानिक के दिखाया की सूर्य के प्रकाश के अंशों में से जब ये किरणे इन सूक्ष्म कनों से टकराकर परावर्तित हो जाती है तो नीला रंग अधिक परावर्तित होता है और लाल रंग उन कणो से आरपार निकल जाता है और कम परावर्तित होता है.

                इसलिए सूर्य प्रकाश का लाल अंश  बिना परावर्तित हुए पृथ्वी तक पहुँच जाता है, पर नीला अंश हवा  में मौजूद गैसों अणुओं , धूल कण, पराग आदि से परावर्तित हो जाता है. और बहुत देर तक हवा में ही बना रहता है. इसी परावर्तित हुई रोशनी के कारण आकाश हमे नीला दिखाई देता है.


आपको पता है ??? दुनिया के वो ५ देश जहा सूरज का अस्त नहीं होता !!!!!

आपको पता है  ???  दुनिया के वो ५ देश जहा सूरज का अस्त नहीं होता !!!!!

              हम सब के मन में कभी ना  ये बात जरूर आती होगी की अगर सूरज का अस्त नहीं हुआ तो
कितना अच्छा होगा. हर तरफ रोशनी ही रोशनी. लेकिन सूरज के आगे कभी किसी का चलता है?सूरज
अपनी मर्जी का मालिक है , अपनी मर्जी से निकलना और अपनी मर्जी से अस्त होना यह उसका मनो
 कर्तव्य ही है जो वो बिना भूले हर रोज निभाता है.
              लेकिन दुनिया ऐसे भी देश है जहां साल में कुछ दिनों तक सूरज का अस्त नहीं होता, है न 
मजेदार बात, तो आइये देखते है ऐसे कौन कौनसे देश है जहाँ दिन रात सूरज अपनी रोशनी बिखेरता
रहता है.

१) नोर्वे -  यह देश आर्क्टिक सर्कल के अंदर आता है, इसे कई लोग मध्यरात्रि का देश भी कहते है. मई से जुलाई के बिच करीब ७६ दिनों तक यहाँ सूरज का असत नहीं होता। 

२) आइसलैंड - ग्रेट ब्रिटेन के बाद यह यूरोप का सबसे बड़ा आइलैंड  है. यहां आप रात में भी सूरज की    रोशनी का आनंद ले सकते हैं. यहां 10 मई से जुलाई के अंत तक सूरज नहीं डूबता है. यहां घूमना आपके लिए काफी यादगार साबित हो सकता है

३) कनाडा - दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश जो अर्से तक बर्फ से ढका रहता है. हालांकि यहां के उत्तरी-पश्च‍िमी हिस्से में गर्मी के दिनों में 50 दिनों तक सूरज लगातार चमकता रहता है.

४) अलास्का यहां मई से जुलाई के बीच में सूरज नहीं डूबता है. अलास्का अपने खूबसूरत ग्लेशियर 
के लिए जाना जाता है. मई से लेकर जुलाई के महीने में बर्फ को रात में चमकते  देखना कितना आनंददायक हो सकता है, इसकी कल्पना तो आप कर ही सकते हैं.

५) फ़िनलैंड  हजारों झीलों और आइलैंड्स से सजा हुआ यह देश काफी सुंदर और आकर्षक है. गर्मी के मौसम   में यहां करीब 73 दिनों तक सूरज अपनी रोशनी बिखेरता रहता है. घूमने के लिहाज से यह देश काफी अच्छा है.

मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के मुख्य प्रावधान


मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित है: 

• राज्य सरकार 25 लाख रूपये तक का उद्योग या व्यवसाय स्थापित करने के लिए बैंक गारन्टी और 5 वर्ष तक 5 प्रतिशत की ऋण सबसिडी देगी.
• ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग और शहरी क्षेत्रों में उद्योग और वाणिज्य विभाग द्वारा योजना लागू की जायेगी.
• योजना के तहत बैंकों को एक महीने के भीतर ऋण के मामले निपटाने होंगे.
• मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के तहत 50 हजार रूपए से लेकर 25 लाख रूपए तक का ऋण उपलब्ध कराया जाएगा.
• योजनांतर्गत हितग्राहियों को मार्जिन मनी सहायता तथा ब्याज अनुदान की सुविधा देने का प्रावधान.
• उद्योग एवं सेवा उद्यमों के लिये सीजीटी-एमएसई (क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट फॉर माईक्रो एण्ड स्माल एंटरप्राइजेस) योजनांतर्गत देय गारंटी शुल्क की राशि का भुगतान राज्य शासन द्वारा किया जायेगा.
• मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के अंतर्गत आय सीमा का कोई बंधन नहीं है.
• मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना का कार्यक्षेत्र संपूर्ण मध्यप्रदेश है.
• इस योजना के क्रियान्वयन हेतु वाणिज्य, उद्योग और रोजगार विभाग नोडल विभाग होगा.
• ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग तथा शहरी क्षेत्रों में वाणिज्य, उद्योग और रोजगार विभाग के माध्यम से योजना का क्रियान्वयन किया जाना है.
• इस योजना के तहत आवेदक मध्यप्रदेश का मूल निवासी हो एवं दसवीं उत्तीर्ण हो.
• मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के तहत आवेदक की आयु 18 से 35 वर्ष के मध्य हो.
• अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, महिला, निःशक्तजन उद्यमी हेतु अधिकतम आयु सीमा में 5 वर्ष की छूट.
• ऋण गारंटी निधि योजना अंतर्गत गारंटी शुल्क प्रतिपूर्ति की सुविधा केवल उद्योग एवं सेवा क्षेत्र के लिये देय, व्यवसाय क्षेत्र के लिये नहीं.
• मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के तहत आवेदक किसी भी बैंक, वित्तीय संस्था का चूककर्ता, अशोधी नहीं होना चाहिये.
• यदि कोई व्यक्ति ऐसी किसी अन्य सरकारी योजना के अंतर्गत पूर्व से सहायता प्राप्त कर रहा है, तो वह मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के अंतर्गत पात्र नहीं.
• मुख्यमंत्री युवा स्वरोजगार योजना के तहत आईटीआई, डिप्लोमा, इंजीनियरिंग, अन्य अधिकृत संस्थाओं द्वारा प्रदत्त माड्यूलर एम्पलायबल स्किल्स प्रमाण-पत्र, गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले परिवारों की सर्वे सूची में अंकित हितग्राही, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, महिला एवं निःशक्तजन एवं उद्यमिता विकास कार्यक्रम अंतर्गत प्रशिक्षित हितग्राही को प्राथमिकता.

अध्यादेश क्या है-------


अध्यादेश क्या है-------
****************************
भारतीय संविधान_अनु 123-राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने की शक्ति देता है यह तब जारी होगा जब राष्ट्रपति संतुष्ट हो जाये कि परिस्थितियाँ ऐसी हो कि तुरंत कार्यवाही करने की जरूरत है तथा संसद का 1 या दोनॉ सदन, सत्र मे नही है तो वह अध्यादेश जारी कर सकता है;
''अस्थाई विधि''-अध्यादेश की जरूरत तुरंत हो सकती है जबकि संसद कोई भी अधिनियम पारित करने मे समय लेती है अध्यादेश को हम अस्थाई विधि मान सकते है.
Important Point----
1.
यह राष्ट्रपति की शक्ति के अन्दर आता है.
2. राष्ट्रपति का अध्यादेश न्यायिक समीक्षा का विषय़ है.
3. प्रत्येक जारी किया हुआ अध्यादेश संसद के दोनो सदनो द्वारा उनके सत्र शुरु होने के 6 हफ्ते के भीतर स्वीकृत करवाना होगा.
4. कोई अध्यादेश संसद की स्वीकृति के बिना 6 मास अधिक नही चल सकता है.
5. लोकसभा अध्यादेश को अस्वीकृत करने वाला प्रस्ताव 6 सप्ताह की अवधि समाप्त होने से पूर्व पास कर सकती है

क्या होता है विधेयक


क्या होता है विधेयक

       क्या होता है विधेयक दरअसल जब किसी नये कानून का निर्माण किया जाना होता है या पुराने कानून में बदलाव किया जाना होता है तो उसके प्राथमिक चरण को अधिनियम कहते हैं। इस प्राथमिक चरण में नये कानून को बनाने के मुख्य प्रस्ताव, सुझाव या पुराने कानून में बदलाव के प्रस्ताव या सुझाव होते हैं। विधेयक कानून नहीं होता है विधेयक को प्रस्ताव के तौर पर भी समझा जा सकता है जिसे कानूनी अमला पहनाने के लिए कई रास्तों से गुजरना होता है। विधेयक दो प्रकार के होते हैं। सार्वजनिक औ र असार्वजनिक विधेयक। लेकिन अगर इसके इतर कोई विधेयक सरकार द्वारा प्रस्तावित किया जाता है तो उसे सरकारी विधेयक कहते हैं। सरकार विधेयक भी दो प्रकार के होते हैं। सामान्य और धन विधेयक। पर जब संसद का कोई साधारण सदस्य सार्वजनिक विधेयक प्रस्तुत करता है तब इसे प्राइवेट विधेयक कहते हैं। विधेयक को कानून बनाने के लिए 5 चरणों से गुजरना होता है तीन चरणों में विधेयक पर दोनों सदनों लोकसभा, राज्यसभा में चर्चा की जाती है। हर चरण में चर्चा के बाद विधेयक को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा जाता है। तीन चरण की चर्चा के बाद चौथे चरण के अंतर्गत विधेयक को दोनों सदनों की साझा बैठक में पास किया जाता है। विधेयक के आखिरी चरण यानि पांचवे चरण में इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति की मुहर के बाद विधेयक कानून का रूप लेता है। विधेयक को कानून बनने से पहल कई प्रक्रियाओं से गुजरना होता है। लोक सभा और राज्य सभा में इस पांच चरणों से होकर गुजरना होता है। प्रथम तीन चरण में विधेयक पर चर्चा होता है। विधेयक को पास करने के लिए इसे संसद के किसी एक सदन में पेश करना होता है। विधेयक को मंत्री या व्यक्तिगत सदस्य पेश कर सकता है विधेयक को या तो मंत्री या कोई प्राइवेट सदस्य पेश कर सकता है। संसद में विधेयक को पेश करने के लिए विधेयक के मुखिया को इसकी इजाजत देनी होती है और इसके बाद इस सदन में पेश किया जाता है। लेकिन अगर इस चरण पर विधेयक का विरोध होता है तो सदन के अध्यक्ष इस पर संक्षिप्त बयान देने के लिए विपक्ष के सदस्य और विधेयक को पेश करने वाले मुखिया को इजाजत दे सकती हैं। विधेयक पर चर्चा के बाद इस पर सवालों और संशोधनों पर वोट कराया जाता है इस चरण के बाद के विधेयक पर चर्चा की जाती है। इसके बाद विधेयक से जुड़े सवालों को वोट के लिए सदन में रखा जा सकता है। इस प्रक्रिया के बाद जब विधेयक सदन में पास हो जाता है तो इसे आधिकारिक राजपत्र के तौर पर पब्लिश किया जाता है। वहीं विधेयक को सदन में पेश किये जाने से पहले भी स्पीकर की इजाजत से पब्लिश किया जा सकता है। चर्चा के बाद विधेयक में संशोधन के सुझाव को शामिल किया जाता है इसके बाद विधेयक को स्टैंडिंग कमेटी में भेजा जाता है। इस चरण में विधेयक को संचालक अधिकारी विधेयक की जांच करके इसपर एक रिपोर्ट बनाता है। स्टैंगिंग कमेटी विधेयक पर इसके विशेषज्ञों से राय ले सकती है। इसके बाद कमेटी के सुझावों पर विधेयक में शामिल किया जा सकता है। इस तरह विधेयक को तीन चरणों पर सदन में पेश किया जाता है, फिर उसे स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा जाता है। इसके बाद तीसरे चरण में विधेयक में संशोधन के लिए दिये गये प्रस्ताव को जोड़ा जाता है। यह प्रक्रिया समान रूप से लोकसभा और राज्यसभा में अपनायी जाती है। 

         राष्ट्रपति की मुहर के बाद विधेयक लेता है कानून का रूप इसके बाद विधेयक के लिए दोनों सदनों की साझा बैठक में इसकी चर्चा की जाती है। इस चरण के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। आखिरकार में जब राष्ट्रपति इस विधेयक पर अपनी मुहर लगा देते हैं तो यह विधेयक कानून का रूप ले लेता है और इसे पूरे देश में लागू किया जाता है

Monday 16 May 2016

क्या होती थी कालापानी की सजा ???


क्या होती थी कालापानी की सजा ???

             जब अंग्रेजी हुकूमत चल रही थी उस दौर में काला पानी की सजा देते आपने कई बार सुना होगा , बहुत ही भयावह सजा थी वो. ऐसा क्या था इस सजा में जो आज भी लोग इसकी चर्चा करते है. और क्यों इसे क्रूरतम श्रेणी में गिना जाता है. 
               सेल्युलर जेल यह एक ऐसा कला अध्याय है भारतीय इतिहास में की भारत शायद ही उसे भूल पाएगा. भारत जब  पूरी तरह गुलामी के जंजीरों में जकड़ा हुआ था  स्वतंत्रता  सेनानीयों पर ब्रिटिश सरकार कहर ध रही थी. हजारो सेनानियों को उस समय फांसी पर लटका दिया था.  लोगों को तोफों के मुंह पर बांध कर उदा दिया। कई योंको तो तिल तिल कर मारा जाता था, इसके लिए अंग्रेजों के पास सेल्युलर जेल का अस्त्र था. इस जेल को सेल्युलर इस लिए नाम दिया गया था क्योकि यहाँ एक कैदी को दूसरे कैदी से बिलकुल अलग रख जाता था. जेल में हर कैदी को अलग अलग सेल होती थी।  यहाँ का अकेलापन कैदी के लिए बहुत भयावह होता था।  
यहाँ कितने भारतीयों को सजा दी गई और कितनो को फांसी दी गई इसका कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है. लेकिन आज भी जीवित स्वतंत्रता सेनानियों के जेहन में काला पानी ये शब्द भयावह जगह के रूप में बसा है. यह शब्द भारत में सबसे बड़ी और बुरी सजा के लिए मुहावरा बना हुआ है. 
               अंडमान के पोर्ट ब्लेयर में स्थित इस जेल की चार दिवारी इतनी छोटी थी की आसानी से कोई भी पार कर सकता है।  लेकिन यह स्थान चारो और से गहरे पानी घिरा हुआ है।  जहाँ से  सेकड़ो किमी दूर पानी के आलावा  दस्ता कुछ भी नजर नहीं आता है।  यहाँ का अंग्रेज सुप्रिडेंट कैदियों से अक्सर कहता था।  जेल की दिवार इरादतन छोटी बनाई गई है।  लेकिन यहाँ ऐसी कोई जगह नहीं है।  जहाँ से आप जा सके।  
                सबसे पहले २०० विद्रोहियों को यहाँ जेलर डेविड बेरी और जेलर जेम्स पैटिसन वॉकर की सुरक्षा में यहाँ लया गया।  उसके बाद ७३३ विद्रोहियों को कराची से लाया गया।  भारत और बर्मा से भी यहाँ सेनानियों को सजा के बतौर लाया गया था।  सुदूर द्वीप होने की वजह से यह विद्रोहियों को सजा देने के लिए अनुकूल जगह समझी जाती थी. उन्हें सिर्फ समाज से अलग करने के लिए यहां नहीं लाया जाता था।  बल्कि उनसे जेल का निर्माण , भवन निर्माण , बंदरगाह निर्माण आदि के काम में लगाया जाता था।  यहाँ आनेवाले कैदी ब्रिटिश शासकों के घरों का निर्माण भी करते थे।  १९ वि शताब्दी में जब स्वतंत्रता  संग्राम ने जोर पकड़ा तो यहाँ कैदियों की संख्या  भी बढती गई।   
                  सेलुलर जेल का निर्माण १८९६ में प्रारंभ हुआ और १९०६ में ये बनकर तैयार हुई।  इसका मुख्य भवन लाल इटोंसे बना  है।  ये ईंटे बर्मा से यहाँ लाई गई जो आज म्यानमार के नाम से  जाना जाता है।  इस भवन की ७  शाखाएं है और बीचो बिच एक टॉवर है।  इस टॉवर से ही सभी कैदियों पर नजर रखी जाती थी. ऊपर से देखने पर ये एक सायकल की पहिए के तरह दिखाई देता है।  टॉवर के ऊपर एक बहुत बड़ा घंटा लगा था. जो किसी भी तरह का संभावित खतरा होने पर बजाया जाता था. 
प्रतेक शाखा तिन मंज़िला बनी थी इनमे कोई शयन कक्ष नहीं था. और कुल ६९८ कोठरियां बनी थी. प्रतेक कोठरी १५*८ फिट की थी।  जिसमे तिन मीटर की ऊंचाई पर रोशनदान थे।  एक कोठरी का कैदी दूसरे कोठरी के कैदी से कोई संपर्क नहीं रख सकता था। जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानियोंको को बेड़ियों से बाँधा जाता था।  
                  कला पानी में अधिकांश कैदी स्वतंत्रता सेनानी थे।  इनमे प्रमुख रूप से डॉ दीवन सिंह , मौलाना फजल-ए - हक खैराबादी , योगेन्द्र शुक्ला, बटुकेश्वर दत्त , मौलाना अहमदउल्ला , मौलवी अब्दुल रहीम सदिकपुरी , बाबूराव सावरकर , विनायक दामोदर सावरकर , भाई परमानंद, शदन चन्द्र चटर्जी , सोहन सिंह , वमन राव जोशी, नंद गोपाल आदि थे. 
                   एक बार यहाँ २३८ कैदियों ने भागने की कोशिश की थी।  लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया।  एक कैदी ने आत्महत्या की तब जेल के अधीक्षक वॉकर ने ८७ लोगों को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया था।  
                   यहाँ १९३० में. भगत सिंह के सहयोगी महावीर सिंह ने अत्याचार के खिलाफ भूक हड़ताल की थी।  जेल अधिकारीयों ने उन्हें जबरन दूध पिलाया।  दूध जैसे ही उनके पेट के अंदर गया उनकी मौत हो गई।  इसके बाद उनके शव को पत्थर बांधकर समुद्र में फेंक दिया गया था. अंग्रेजो द्वारा अमानवीय अत्त्याचार करने के कारन १९३० में यहाँ कैदियों ने भूक हड़ताल कर दी थी, तब महात्मा गांधी और रविंद्रनाथ टैगोर ने इसमें हस्तक्षेप किया।  १९३७ -३८ में यहाँ से कैदियों को स्वदेश भेज दिया गया था।  
                   जापानी शासकों  यहाँ १९४२ में कब्ज़ा किया, और अंग्रेजों को यहाँ से दौरान नेताजी मार भगाया।  उस समय अंग्रेज कैदियों को सेल्युलर जेल में बंद कर दिया गया था।  उस दौरान नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने भी वहां का दौरा किया था।  ७ में से दो शाखाओं को जापानियों ने नष्ठ कर दिया था।  द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद १९४५ में फिर से अंग्रेजो ने यहाँ कब्ज़ा जमाया।  
                    भारत को आजादी  मिलने  बाद इसकी दो और शाखाओं की ध्वस्त कर दिया गया।  शेष बची ३ शाखाएं और मुक्य टॉवर को १९६९ में राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया।  १९६३ में यहाँ गोविन्द वल्लभ पंत असप्ताल खोला गया।  वर्तमान में यहाँ ५०० बिस्तरों वाला असप्ताल है और ४० डॉक्टर यहाँ के निवासियों की सेवा कर रहे है।  १० मार्च २००६ को सेल्युलर जेल का शताब्दी वर्ष समारोह मनाया गया।  भारत सरकार द्वारा इस जेल में सजा काट चुके कैदियों को बधाई दी गई. 

                  १९९६  में हुई कला पानी मल्यालम फिल्म की शूटिंग यहीं पर हुई थी।  




                    

Sunday 15 May 2016

VT आखिर है क्या?

        क्या आपने कभी गौर किया है कि भारत में सभी हवाई जहाजों के विंग्स और बॉडी पर VT से शुरू होने वाला नाम प्रमुखता से लिखा होता है. असम में भारत के हर हवाई जहाज का नाम VT से ही शुरू होता है. लेकिन ये VT आखिर है क्या?

तरुण विजय ने संसद में बताया VT का मतलब 
                  ज्यादातर लोगों की तरह हमारे सांसदों को भी या तो इसका मतलब पता ही नहीं था या फिर उन्होंने इस पर अभी तक गौर नहीं किया. लेकिन मंगलवार को जब बीजेपी सांसद तरुण विजय ने राज्यसभा में ये मामला उठाया और
VT का मतलब सांसदों को बताया तो ज्यादातर सांसदों का सिर शर्म से झुक गया. दरअसल दो अक्षर का ये शब्द बताता है कि किस तरह हम 87 सालों से गुलामी के एक प्रतिक  को ढो रहे हैं और दुनिया को बता भी रहे हैं. VT का मतलब है 'Viceroy Territory' यानी वायसरॉय का इलाका.

क्या होता है 5 अक्षरों के इस कोड का मतलब? 
               अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक, हर हवाई जहाज के उपर ये प्रमुखता से लिखा होना चाहिए कि वो किस देश का है, यानी उसकी पहचान क्या है. ये रजिस्ट्रेशन कोड पांच अक्षरों का होता है. पहले दो अक्षर देश का कोड होता है और उसके बाद के अक्षर ये दिखाते हैं कि
हवाई जहाज की मालिक  कौन सी कंपनी है. देश को ये कोड इंटरनेशनल सिव‍िल एविएशन ऑर्गनाइजेशन (ICAO) देती है.

1929 में मिला था VT 
        भारत को ICOA से 'Viceroy Territory' (VT) कोड 1929 में तब मिला था, जब यहां अंग्रेजों का राज था. लेकिन हैरानी की बात है कि 87 साल बीत जाने के बाद भी भारत अपनी गुलामी की इस पहचान को बदलने में नाकाम रहा है. मंगलवार को जब ये मामला संसद में उठा तो सभी पार्टियों के सांसदों ने सरकार से एक स्वर में मांग की कि इस नाम से जल्दी से जल्दी छुटकारा पाया जाए. मामले को उठाने वाले बीजेपी सांसद तरुण विजय ने कहा कि हैरानी की बात है कि चीन, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और फि‍जी जैसे देशों ने भी अपने देश का कोड बदल कर नया कोड हासिल कर लिया. लेकिन भारत अभी तक ये करने में नाकाम रहा है.

यूपीए सरकार ने की थी नया कोड लेने की आधी-अधूरी कोश‍िश 
               सच्चाई ये है कि यूपीए सरकार के दौरान भारत की तरफ से इस बारे में आधी अधूरी कोशिश की गई थी. भारत ने
BA (भारत) या IN (इंडिया) कोड हासिल करने की कोशिश की. लेकिन पता चला कि B कोड चीन और I कोड इटली पहले ही ले चुका है. इसके बाद तत्कालीन सिविल एविएशन मिनिस्टर प्रफुल्ल पटेल ने ऐलान कर दिया कि मनमुताबिक कोड उपलब्ध नहीं होने के कारण भारत VT कोड ही जारी रखेगा.
अब सभी पार्टियों के सांसद मिलकर मांग कर रहे हैं कि गुलामी के प्रतीक इस को़ड का नामोंनिशान मिटाया जाए और कोई नया कोड जल्द से जल्द हासिल किया जाए.

कुतुबमिनार भारत कि विश्व धरोहर !!!! क्या आप जानते है इसके बारे में ????

             कुतुबमिनार एक एसी मिनार जो  विश्व कि सबसे उंची मिनार है. और ये मिनार दिल्ली में मेहरोली इलाके में है. कुतुबमिनार कि उंचाई  ७२.५ मीटर ( २३७.८६ फिट )  है. और कुतुबमिनार  व्यास १४. मीटर है, जो कि  जाकर २. मीटर हो जाता है. कुतुबमिनार में लगभग ३७९ सिढियां हैं , कुतुबमिनार के  चारो ओर भारतीय कला के उत्कृष्ट नमुने हैं. कई कलाओंका निर्माण तो ११९३ पूर्व में हुआ हैं.
कुतुबमिनार इस भारत कि खुबसुरत धरोहर को युनेस्को ने विश्व धरोहर के रूप में स्वीकृत किया है.

             जाम कि मिनार जो कि अफगाणिस्तान में हैं उससे प्रेरित होकर  उससे भी उंची मिनार बनाने कि इच्छा दिल्ली के पहले मुस्लिम शासक कुतुबुद्दीन एबक कि थी. इसी इच्छा से ११९३ में कुतुबमिनार के निर्माण का प्रारंभ हुआ. लेकिन कुतुबुद्दीन एबक सिर्फ इसका आधार हि बनवा पाया. उसके मृत्यू के बाद उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ( इल्तुतमिश  -  जो कि कुतुबुद्दीन एबक का दामाद था, और दिल्ली सल्तनत से  गुलाम वंश का एक प्रमुख शासक था  कुतुबुद्दीन एबक के कार्यकाल के बाद इल्तुतमिश उस शासको में था जिससे दिल्ली सल्तनत कि नीव मजबूत हुई. उसने १२११ इस्वी से १२३६ इसवी तक शासन किया. उसके राज्याभिषेक के समय तुर्क अमीरओ ने उसका बहुत विरोध किय. कुतुबुद्दीन एबक कि मूत्यू अकस्मात हुई थी तो वो उसके पश्च्यात उत्तराधिकारी का चुनाव वो नही कर सका था. तो उसके मृत्यू के बाद लाहोर के तुर्क अधिकारीयो ने कुतुबुद्दीन के विवादित पुत्र ( जिसे इतिहासकार नही मानते) उसको गद्दी पे बिठाया, परंतु दिल्ली तुर्क सरदारो के विरोध के बाद इल्तुतमिश जो कि बदायु का सुबेदार था उसे दिल्ली बुलाकर उसे राज्यसिहासन पर बिठाया दिया गया. आरामशहा और इल्तुतमिश  के बीच दिल्ली के नजदीक जड नामक स्थान पर संघर्ष हुआ, जिसमे आरामशहा को बंदी बनाकर उसकी हत्या कर दि गई. इस तरह एबक वंश का शासन समाप्त होकर इल्बारी वंश का शासन प्रारंभ हुआ.) उस  ने इस में तीन मंझीलो को बढाया. .इसके बाद फिरोजशहा तुगलक जो कि दिल्ली सल्तनत का तुगलक वंश का शासक था उसकी हूकूमत १३५१ से १३८८ तक रही उसने कुतुब मिनार कि पांचवी और अंतिम मंझील बनवाई. एबक से तुघलक तक इस वस्तू में बहुत सारे बदलाव हुये कुतुब मिनार पुरातन दिल्ली शहर दिल्लीका  के  प्राचीन किले लालकोट के अवशेषोसे बनी हैं.

              कुतुबमिनार के निर्माण उद्देश्य के बारे में कहा जाता है कि वो इस्लाम कि दिल्ली पर विजय के रूप में बनी. इसको कुतुबमिना र नाम क्यू दिया गया इस पर भी विवाद हैं कुछ पुरातत्व शास्त्रियो का कहना है इसका नाम कुतुबुद्दीन एबक के नाम से पडा तो कुछ का मानणा है इसका नाम बगदाद के प्रसिद्ध संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काफी के नाम पर है. इल्तुतमिश उनका बहुत आदर किया करता था . इसलिये  कुतुबमिनार को  ये नाम दिया गया.


             कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने ११९३ में शुरू करवाया था। पर ऐबक केवल काम शुरू ही करवा सका था कि उसकी मृत्यु हो गई। इल्तुतमिश ने जो ऐबक के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा, इसमें तीन मंजिलें जुड़वाईं। कुतुबमीनार में आग लगने के बाद उसका पुनर्निर्माण फिरोज शाह तुगलक के समय मे. हुआ। इसकी मरम्मत तो फ़िरोज शाह तुगलक ने (१३५१–८८) और सिकंदर लोधी ने (१४८९–१५१७) करवाई मेजर आर.स्मिथ ने इसका जीर्णोद्धार १८२९ में करवाया था.

आपको पता है !!!!!! ? कैसे होती है पी एम नरेंद्र मोदी जी कि सुरक्षा ??????



आपको पता है !!!!!!  ?  कैसे होती है पी एम नरेंद्र मोदी जी कि सुरक्षा ??????

       मोदी जी भारत के ऐसे प्रधानमंत्री है  जिनके जान को सबसे ज्यादा खतरा रहता हैं.
कई आतंकी संगठ्नो के  निशाने पर पीएम मोदी जी है. इसलिये वो जहा से भी गुजरते है ,
वहा जमीन से लेकर आसमान  तक चप्पे चप्पे पर नजर रखी जाती हैं.


       मोदी जी कि सिक्योरिटी मनमोहन जी कि तुलना में  दोगुनी है. वो जहां से गुजरते हैं वहा एसपीजी (Special Protection Group)  के जवान तैनात रहते है.
उनके सुरक्षा में विभिन्न घेरो के तहत १००० से ज्यादा कमांडो तैनात रहते हैं .

       मोदी जी  अतिसुरक्षा वाली बुलेटप्रुफ बीएमडब्ल्यु ७ में सफर करते हैं. उनके काफिले में साथ साथ ऐसी  ही दो डमी कारे चलती हैं.
ताकी हमलावर को भ्रमित किया जा सके.

       मोदी जी के काफिले में चलने वाली करो कि एसपीजी (Special Protection Group)  अच्छी तरह जाचं करती है उनके काफिले में एक जेमर से लेस कार रहती हैं .
जिसमे २ एटीना फिट रहते हैं , ये सडक के दोनो तरफ १०० मीटर कि दुरी  तक रखे विस्फोटक को निष्क्रिय कर सकते हैं .

        पीएम मोदी जी के काफिले में एक अम्बुलन्स भी चलता हैं ,  और दिल्ली पुलिस कि जीप्सिय्या हमेशा आगे पिचे रहती है.
जब पीएम पैदल चलते है तो उनके आगे पीछे सिविल ड्रेस में एनएसजी (National Security Guard ) के कमांडो चलते है .

        एसपीजी के कमांडो के पास खास तरह कि रायफल रहती है , जीससे एक मिनट  में ८०० फायर हो सकता  है .

        पीएम मोदी के पास रहने वाले गार्ड काले चष्मे पहणते है , ऐसा इसलिये कि अगर कोई पीएम पर निशाना साधने कि हिमाकत  करे तो उसे जवान देख ले और उसे पता भी
नही चले कि उसकी गतीविधी पर जवान कि नजर है .
प्रधानमंत्री के सात रेसकोर्स रोड स्थित आवास में एसपीजी के ५०० से ज्यादा कमांडो तैनात रहते है.

         पीएम अगर विदेश जाते है तो उनके हवाई यात्रा कि जिम्मेदारी एयरफोर्स कि होती है , पीएम के एयरपोर्ट पहुंचने के पहले दो विमान तैय्यार रहते है . अगर एक विमान खराब हो तो दुसरे विमान का उपयोग किया जाता है .

पीएम के विमान के उडान भरणे से पहले पुरे इलाके को नो फ्लाइंग झोन में बदल दिया जाता है .  

Tuesday 3 May 2016

कल्पना चावला एक उड़ान

         
             कल्पना चावला का जन्म भारत के करनूल, हरयाणा में एक पंजाबी हिन्दू परिवार में हुआ था. कल्पना का मतलब कल्पना करना इमेजिनेशन उनके काम और नाम में बहुत समानता रही. उड़ान के प्रति उनकी बहुत रूचि थी. और आगे उसी क्षेत्र में उन्होंने बहुत सी उपलब्धियां हासील की. जे आर डी  टाटा जो एक पायलट  और उद्योगपती है उनसे कल्पना चावला प्रेरित हुई. 

           कल्पना चावला की स्कूली शिक्षा करनूल के टैगोर पब्लिक स्कुल में हुई, उनकी आगे की पढाई १९८२ ंसे चड़ीगढ़ में पंजाब इंजीनियरिंग  में हुई आगे १९८४ में टेक्सास विश्वविध्यालय से उन्होंने एरोस्पेस इंजिनयरिंग में मास्टर ऑफ़ साइंस की डिग्री ली. 

           आगे १९८८ में कल्पना चावला ने नासा में काम करना शुरू किया। १९९४ में उनका चयन नासा ने अन्तरिक्ष यात्रियों के १५ वे ग्रुप में किया, इसी तरह कल्पना चावला का एक अन्तरिक्ष यात्री के रूप में चयन हुआ. 

            जानसन स्पेस सेंटर में एक साल के प्रशिक्षण के बाद उनकी अन्तरिक्ष यात्री के प्रतिनिधी के रूप में नियुक्ति की गई. वहाँ उनके दो प्रमुख काम थे, १. रोबोटिक उपकरणोंका विकास करना, २) स्पेस शटल को नियंत्रित करनेवाले सॉफ्टवेयर का प्रयोगशाला में टेस्टिंग करना. 

            कल्पना चावला का पहला उड़ान एस टी एस ८७ कोलम्बिया शटल से सम्पन्न हुआ, ये मिशन १९ नवम्बर १९९७ से ५ दिसंबर १९९७ तक रहा , इस मिशन में अन्तरिक्ष  भारहीनता किस तरह से भौतिक क्रियाओंको प्रभावित करती है इसका परिक्षण किया गया।  ये मिशन ३७६ घंटे और ३४ मिनट तक रहा. 
इस दौरान शटल ने धरती की २५२ परिक्रमाएं की. 

             कल्पना की दूसरी उड़ान १६ जनवरी २००३ को स्पेस कोलम्बिया से शुरू हुई लेकिन दुर्भाग्य से ये उनकी आखरी उड़ान रही. ये १६ दिन का अन्तरिक्ष उड़ान था जो पूरी तरह से विज्ञानं और अनुसंधान पर आधारित था. 
इस मिशन में अन्तरिक्ष यात्रिओ ने २ दिन तक काम किया और ८० परिक्षण और प्रयोग संपन्न किये थे. लेकिन १ फरवरी २००३ को स्पेस कोलम्बिया लेंडिंग से पहले ही दुर्घटना ग्रस्त हो गया. जिसमे कल्पना के साथ ६ अन्तरिक्ष यत्रीओंका मृत्यु हो गयी. 

             उनका दूसरा उड़ान देखने उनका परिवार भारत से अमरीका गया था।  उड़ान  बाद पूरा परिवार उनके वापसी का  इंतज़ार कर था, लेकिन वक़्त को  कुछ और ही मंजूर था. 

             कल्पना वापिस नहीं आयी वो कल्पनाओं में ही खो गई। 

.... किसी ने उनको पूछा की आपको अन्तरिक्ष इस विषय में रूचि कैसे उत्पन्न हुई,  विज्ञानं के कोनसे चीज ने आपको आकर्षित किया. 

उनका जवाब - जब में हाई स्कूल में पढ़ रही थी तो में सोचा करती थी में  भग्यशाली हूँ जो मेरा करनाल जैसे शहर में जन्म हुआ. जहां उस समय भी फ्लाईंग क्लब थे. मैं छोटे छोटे पुष्पक विमान उड़ते हुए देखती थी. मैं और मेरा भाई कभी कभी इन उड़ते हुए विमानों को देखा करते. साथ साथ अपने पिताजी से भी पूछती रहती क्या मैं इन वायु यानो में बैठकर उड़ सकती हूँ. हमारे पिताजी उस वक़्त हने उन फ्लाईंग क्लब में लेजाते और पुष्पक विमानों की सैर कराते थे मैं समझती हूँ वही से ही मुझे एरोस्पेस इंजीयरिंग के प्रति रूचि हुई. उम्र के साथ मैंने जे आर डी  टाटा का नाम सुना जिन्होंने भारत में मेल भेजने के लिए वायुयानों का उपयोग किया तभी इन्ही सब बातों  के कारन जब में पढ़ रही थी तब कोई मुझसे पूछता   बढ़ी होकर क्या बनोगी तो में कहती एरोस्पेस इंजीनियर। 

 किसी ने उनको पूछा  किन लोगों से आप प्रेरित हुई किससे आपको प्रेरणा मिली. 

उनका जवाब - मुझे जीवन में अनेक लोगोंसे प्रेरणा मिली सबसे अधिक अपने अध्यापकों और किताबों से। 


कल्पना चावला की जीवन से सम्बंधित कुछ बाते। ..... 

१) प्रथम भारतीय अमरीकी अन्तरिक्ष यात्री जन्म भारत में हुआ बाद में वह अमरीकी नागरिक बन गई. 
२) १९९४ में नासा में अन्तरिक्ष यात्री के रूप में चयन. 
३) अमरीकी डॉक्टरेट और एरोस्पेस इंजीरिंग में एम एस 
४) अन्तरिक्ष में जाने वाली दूसरी भारतीय महिला। ..... पहले यात्री राकेश शर्मा थे. 
५) फ्रांसीसी जान पियर से शादी जो एक फ्लाईंग इंस्ट्रक्टेर थे.